तबस्सुम दीदार ए हुस्न
Description:... ये बात उसके हुस्न दीदार ए दिलबर की है,
एक हुस्न के किस्से को तीन हिस्सों में समेंट कर लिखने की है,
बात अगर उस हुस्न की करें तो शब्दों की झड़ियों में भी
उस क़ीमती से तिलिस्मी दीदार का ज़िक्र कुछ मुश्किल सा लगता है,
वो मेरे एहसास के पन्नो में जुड़ें हुए नगीने सा लगता है,
सुबह की खिलती धूप सा लगता है,
शाम के घर लौटते पंछी का घर पहुँचने की कुछ जल्दी जैसा लगता है,
उसके हुस्न पर कहे बिना अब दिन कुछ अधूरा सा लगता है,
उसके एहतिराम ए पेशकश में
अब मैं क्या कहूँ खुद खुदा ने उसे दुनियाँ से इतना ख़ास जो बनाया है।
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