वातायन (Hindi Poetry) Vatayan (Hindi Sahitya)
Description:... आमुख (द्वितीय संस्करण)
ज़ाहिर है द्वितीय संस्करण का प्रकाशन अत्यंत खुशी की बात है। किस लेखक को नहीं लगती, चाहे किसी लिए हो, प्रसन्नता तो होती ही है। द्वितीय संस्करण निकालने का मुख्य उद्देश्य प्रथम काव्य संग्रह को पाठकों के समक्ष पुनः प्रस्तुत करना। मुझे लगा कि कहीं न कहीं हिंदी में कविता का विकास वैसा नहीं हो रहा, जैसा मैंने या और भी मनीषियों ने सोचा होगा। काव्य रचना या साहित्य रचना समुन्दर में डुबकी लगाने जैसा है। साहित्य का सागर तो अथाह है। जितना गहरा जाओ, उतने ही मोती मिलते हैं। कविता रचने के लिए भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है, जो आजकल की तेजी से दौड़ती दुनियां में परिलक्षित नहीं होता है। सभी एक पल में ही सभी कुछ पा लेना चाहते हैं। धन के सन्दर्भ में किसी की लाटरी निकल आये तो वह एक ही दिन में करोड़पति बन सकता है, किन्तु साहित्य के सन्दर्भ में ऐसा संभव नहीं है। साहित्य-साधना एक तपस्या है, और इसे जीने के लिए सच में ही तपस्या करनी पडती है। साहित्य-सृजन में कुछ औचक नहीं होता।
एक और बात। शब्दों की भी आत्मा होती है। कोई भी शब्द, कोई भी भाषा हृद्यास्थित भावनाओं को उसी की आस्था में प्रतिबिंबित करे, जरूरी नहीं। इसलिए भाषा कभी-कभी कम पड़ जाती है। हृदय स्थित भावनाओं के गुब़ार को पकड़ना होता है, उसके अंदर जीना होता है, तब कविता जन्मती है। मानस-कारा में बहुत सारी भावनाएं कैद रहती हैं। कुछ निकल आतीं हैं तो कुछ घुट-घुट कर मर जातीं हैं। प्रत्येक आदमी के अंदर कविता या साहित्य का वास होता है। पर कुछ ही हैं जो अपनी भावनाओं को अमली-जामा पहनाने में सफल हो पाते हैं। और उसके लिए भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है।
कुछ लालच से ही सही, मैंने ‘वातायन’ का द्वितीय संस्करण निकालने का निर्णय लिया। प्रथम संस्करण ‘पारिजात प्रकाशन’ पटना से निकला था, जिसे स्वर्गीय श्री शंकर दयाल सिंह चलाते थे, जो अब जहाँ तक मेरी जानकारी है, बंद पड़ा है। शंकर दयाल सिंह एक सफ़ल राजनेता (लोक सभा के सदस्य), होने के साथ साथ एक लेखक भी थे। उनसे मेरी बहुत सारी मीठी स्मृतियाँ जुड़ी हुईं हैं।
इस संस्करण में वे सारी कवितायेँ हैं जो प्रथम संस्करण में थीं पर मैंने कुछ सुधार अवश्य किया है। आशा है इसे पाठकों का समुचित समर्थन मिलेगा। इसी आशा के साथ ‘वातायन’ का दूसरा संस्करण भारतीय साहित्य संग्रह, कानपुर द्वारा प्रस्तुत है।
लालजी वर्मा
मई, 2021
नई दिल्ली
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