Vivekananda Ki Prabha Se Udbhasit Subhashachandra Part 2 / विवेकानन्द की प्रभा से उद्भासित सुभाषचन्द्र भाग - २
Description:... “समकालीन भारत की दुर्दशा को देखकर चिन्तित होते हुए भी सुभाषचन्द्र भारत के पुनरुत्थान के सम्बन्ध में निश्चिन्त भाव से आशावादी थे। सुभाषचन्द्र बसु लिखते हैं : भारत यद्यपि अपना सब कुछ खो बैठा है, भारतवासी प्राय: सारविहीन हो गये हैं, परन्तु इस प्रकार सोचने से काम नहीं चलेगा – हताश होने से काम नहीं चलेगा और जैसा कि कवि ने कहा है – ‘फिर से तुम मनुष्य हो जाओ, फिर से मनुष्य बनना होगा ... यही नैराश्य-निस्तब्धता – इसी दु:ख-दारिद्र्य, अनशन, सर्वत्र हाहाकार और इसी विलास-विभव-असफलता के रव को भेद कर फिर से भारत का वही राष्ट्रीय गीत गाना होगा। वह क्या है – उतिष्ठत, जाग्रत।
भारत की मुक्ति और पुनरुज्जीवन के तात्पर्य के सम्बन्ध में नेताजी सुभाषचन्द्र स्वामी विवेकानन्द की तरह ही सजग और सचेतन थे। वे सोचते थे – विश्व की संस्कृति और सभ्यता में भारत का योगदान न रहने से विश्व और भी अधिक दरिद्र हो जाएगा। भविष्य के भारत के गठन के लिए भी सुभाषचन्द्र की विस्तृत कल्पना और चिन्तन में विवेकानन्द का प्रभाव दिखाई देता है। देश की राजनैतिक मुक्ति और राष्ट्रीय पुनर्गठन के लिए स्वामी विवेकानन्द की तरह सुभाषचन्द्र बसु देश के युवा समाज के ऊपर सबसे अधिक निर्भर थे, जो सेवादर्श में उद्बुद्ध होकर संकीर्ण व्यक्तिगत, गोष्ठीगत या दलीय स्वार्थ का अतिक्रमण करने में समर्थ होंगे और संगठित प्रयास से समाज की सामग्रिक उन्नति के लिए कूद पड़ेंगे।
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